2040 तक इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा प्लास्टिक (2023)

दुनिया के महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर पिछले 15 सालों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. एक रिसर्च के मुताबिक महासागरों में 170 ट्रिलियन प्लास्टिक के टुकड़े जमा हो गए हैं. जिनका वजन लगभग 2 मिलियन मीट्रिक टन है. रिसर्च में ये कहा गया है कि अगर कोई तत्काल कार्रवाई नहीं की जाएगी तो साल 2040 तक ये कचरे तीन गुना तक बढ़ सकते हैं.

प्लास्टिक के इन कचरों में माइक्रोप्लास्टिक्स सबसे ज्यादा है. परेशान करने वाली बात ये है कि 2005 में इन कचरों का ज्यादातर हिस्सा हटा दिया गया था. अब रिसर्च में ये साबित हुआ कि साल 2005 के बाद से इन कचरों में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

5 गाइरेंस इंस्टीट्यूट (कैलिफोर्निया) की लिसा एम एर्डल और मार्कस एरिक्सन, मूर इंस्टीट्यूट फॉर प्लास्टिक पॉल्यूशन रिसर्च (कैलिफोर्निया) के विन काउगर, स्टॉकहोम रेजिलिएंस सेंटर (स्वीडन) की पेट्रीसिया विलाररूबिया-गोमेज़ के अलावा छह शोधकर्ताओं ने इस मुसीबत से तुरंत निजात के लिए कदम उठाने को कहा है .

दस साल से कम समय में बढ़ी ये गंदगी

विलाररुबिया गोमेज ने अपने एक बयान में ये कहा कि महासागरों की स्थिति उम्मीद से कहीं ज्यादा खराब है. 2014 में यह अनुमान लगाया गया था कि समुद्र में 5 ट्रिलियन प्लास्टिक के कचरे थे. अब दस साल से भी कम समय बाद ये गंदगी 170 ट्रिलियन पर पहुंच चुकी है.

क्या आने वाले समय में महासागरों में जमा इन प्लास्टिकों में बढ़ोत्तरी होगी ?

रिसर्च में बताया गया है कि आने वाले समय में इन प्लास्टिक में इजाफा होगा. शोधकर्ताओं ने 40 साल की अवधि के बीच दुनिया भर के 11,000 से ज्यादा स्टेशनों से प्लास्टिक के नमूने लिए थे. 40 साल के बीच के इस शोध में साल 1979 और 2019 के बीच के नमूने लिए गए थे.

रिजल्ट में 1990 तक कोई परिणाम नहीं मिला, लेकिन 1990 और 2005 के बीच इसके परिणामों में उतार-चढ़ाव देखा गया. इस दौरान महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई.

2005 के बाद तेजी से हुई बढ़ोत्तरी

लिसा एर्डले ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि शोध पत्र लिखते समय मैंने ये पाया कि 2005 के बाद से महासागरों में जमा प्लास्टिक में तेजी से वृद्धि हुई है. महासागरों के प्रदूषण को काबू करने की कुछ नीतियां भी है लेकिन शोध के नतीजों को देख के ऐसा लग रहा है कि समुद्र में प्लास्टिक के कचरों को नियंत्रित करने में ये कोई खास काम नहीं कर पाईं.

इस अध्ययन में उत्तरी अटलांटिक, दक्षिण अटलांटिक, उत्तरी प्रशांत, दक्षिण प्रशांत, भारतीय और भूमध्यसागरीय महासागरों में नमूनों की जांच की गई.लिसा एर्डले का ये भी कहना था कि 2005 के बाद से हमने दुनिया में 5,000,000 टन से ज्यादा नए प्लास्टिक का उत्पादन किया है, और ज्यादा प्लास्टिक के इस्तेमाल से ज्यादा प्रदूषण पनपा है.

अध्ययन में ये बताया गया है कि समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक्स सहित प्लास्टिक के कचरों की एकाग्रता 2000 के दशक के मध्य से महासागरों में आसमान छू रही है. शोधकर्ताओं ने आगे इस बात का जिक्र किया कि अगर दुनिया भर के देश इस मुद्दे पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं करते हैं तो 2040 तक जलीय वातावरण में बहने वाले प्लास्टिक में 2.6 गुना बढ़ोत्तरी होगी.

माइक्रोप्लास्टिक महासागरों और समुद्री जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं?

हाल के कई अध्ययनों ने समुद्री जीवों में माइक्रोप्लास्टिक्स का पता लगाया है. फाइटोप्लांकटन से व्हेल और डॉल्फिन तक के लिए ये माइक्रोप्लास्टिक्सखतरनाक साबित हो सकते हैं. नए शोध पेपर के सह-लेखकों में से एक एरिक्सन के मुताबिक ऐसे कणों का अंतर्ग्रहण समुद्री जीवों के लिए यांत्रिक समस्याएं पैदा कर सकता है.

यांत्रिक समस्याओं का मतलब जलीय जीवों में भोजन न पचने और समुद्र के अंदर ऑक्सीजन न ले पाने जैसी दिक्कतों से है.

शोध में ये कहा गया कि प्लास्टिक का सेवन करने से जलीय जीवों जैसे व्हेल या डॉल्फिन मे रासायनिक समस्याएं पैदा होती हैं. माइक्रोप्लास्टिक्स कई हाइड्रोफोबिक यौगिकों जैसे डीडीटी, पीसीबी और अन्य औद्योगिक रसायन को अवशोषित करते हैं. सबूत ये बताते हैं कि उन्हें निगलने पर जलीय जीवों को जान का खतरा होता है.

माइक्रोप्लास्टिक्स महासागरों के कार्बन चक्र में भी रुकावट पैदा करते हैं. शोध के मुताबिक प्लास्टिक से बने कार्बन युक्त छर्रों से कार्बन की चट्टाने दोबारा से बनती है. वायुमंडल को सबसे ज्यादा खतरा इसी से होता है.

शोध में कहा गया है कि अगर जोप्लैंक्टोन (एक तरह का जलीय जीव) माइक्रोप्लास्टिक्स खा लेता है तो वो अपने अंदर कंज्यूम किया कार्बन समुद्र तल तक ले जाता है. इससे पूरे समुद्री जिव को नुकसान होता है.

ज़ोप्लांकटन समुद्र में पाए जाने वाला एक ऐसा जिव है जो कार्बनिक अपशिष्ट को विघटित करता है. ज़ोप्लांकटन को जलीय प्रणालियों के जैविक समुदायों के आवश्यक घटकों में से एक माना जाता है. ये जिव समुद्र की ट्रॉफिक श्रृंखलाओं में प्राथमिक उपभोक्ता माना जाता है.

साथ ही समुद्र में रह रहे दूसरे जीवों के बीच एक लिंक भी बनाता है. यानी समुद्र में जमा हो रहे ये प्लास्टिक समुद्री खाद्य श्रृंखला के लिए एक गंभीर खतरा है.

इंसानी जीवन के लिए कितना बड़ा है ये खतरा, जानिए

साल 1907 में पहली बार प्रयोगशाला में कृत्रिम प्लास्टिक की खोज हुई. तब आविष्कारक लियो बकलैंड ने कहा था कि अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरा ये आविष्कार एक नए भविष्य की रचना करेगा. उस दौरान प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने अपने मुख्य पृष्ठ पर लियो बकलैंड की तस्वीर छापी थी और उनकी फोटो के साथ लिखा था कि ये ना जलेगा और ना पिघलेगा.’

जब 80 के दशक में धीरे-धीरे पॉलीथिन की थैलियों ने कपड़े के थैलों, जूट के बैग, कागज के लिफाफों की जगह लेनी शुरू की तो सच में ये एक नए भविष्य की रचना ही थी.

आज सालों बाद 'न जलेगा न पिघलेगा’ जो इसका सबसे बड़ा गुण था, वही इसका सबसे बड़ा अवगुण बन गया है. प्लास्टिक की थैलियों में बाजार से सामान लाए जाते हैं, और हर कोई इसे घर के बाहर फेंक देता है, लेकिन इन प्लास्टिक के थैले को नष्ट होने में हजारों साल लग जाते हैं.

गौर करने वाली बात ये है कि इस दौरान ये मिट्टी में या पानी में जहां भी रहते हैं अपने विषैले तत्व आस-पास के वातावरण में छोड़ते रहते हैं. जो मानव जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहा है.

धरती से समुद्र में कैसे पहुंच जाते हैं ये प्लास्टिक

भारत में लगभग 65 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट जनित होता है जिसमें से लगभग 62 मिलियन टन नगरीय ठोस अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत है. इस ठोस अपशिष्ट का लगभग 75 से 80 प्रतिशत ही 4355 नगर निकायों में जाता है. बाकी बचे अपशिष्ट प्राकृतिक रूप से नदियों के माध्यम से अंततोगत्वा समुद्र में पहुंचकर समुद्री मलबे का हिस्सा बनते हैं.

साल 2021-22 में भारत में कुल प्लास्टिक की मांग लगभग 20.89 मिलियन टन थी. कुल मांग का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक कूड़े में बदल जाता है और लैंडफिल या डंप साइट का हिस्सा बन जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली की 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 3.46 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट के रूप में जमा हुआ था.

समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक अब धीरे-धीरे मनुष्य के आहार श्रंखला का हिस्सा भी बनते जा रहे हैं. हाल ही में यूनाइटेड नेशन ने भी अपने एजेंडा 2030 में ये कहा कि वैश्विक स्तर पर 2025 तक सभी देशों को मरीन पॉल्यूशन / मरीन लिटर को कम करने के लिए सभी तरह के जमीन और जल आधारित प्रदूषण को रोकने और कम करने की तत्काल जरूरत है.

महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे कम किया जा सकता है ?

ताजा हुए शोध में शोधकर्ताओं में ये सुझाव दिया कि एकल-उपयोग यानी सिंगल यूज प्लास्टिक को फेंकने से लेकर प्लास्टिक के उत्पादन को सीमित करने के लिए एक वैश्विक नियम बनाने की तत्काल जरूरत है.

शोध में ये सुझाव दिया गया है कि हमें शहरों में अपने कचरे के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होने की जरूरत है. इससे शहर के हर एक क्षेत्र से कचरा खत्म होगा. नए प्लास्टिक उत्पादों में रासायनिक एडिटिव्स की मात्रा को कम करना भी समाधान हो सकता है.

शोध में रीसाइक्लिंग पर काफी जोर दिया गया है. यानी प्लास्टिक का इस्तेमाल करके यूज्ड प्लास्टिक का इस्तेमाल नए उत्पादों में किया जाए. शोधकर्ताओं ने ये कहा कि प्लास्टिक बनाने वाले उद्योग इस बारे में तकनीकी रूप से मदद कर सकते हैं.

शोधकर्ताओं ने इस बात पर परेशानी जताई कि पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक खरीदने को लेकर कोई नियम नहीं है इसलिए रीसाइक्लिंग नाकामयाब हो रही है.

भारत में सिंगलयूजऔरमल्टीलेयरप्लास्टिक कितनी बड़ीसमस्याहै

1 जुलाई 2022 से भारत सरकार ने कुल 19 तरह के सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है . प्रतिबंधित उत्पादों के इस्तेमाल नहीं किए जाने के लिए भारत सरकार के ने पिछले 6 सालों से लगभग 3000 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च की है. जिसका अहम मकसद प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर जागरूकता अभियान और कोस्टल क्लीनिंग ड्राइव या तटीय क्षेत्रों की सफाई का अभियान चलाया जाना है.

इसके बावजूद कोई ठोस नतीजा सामने निकल कर नहीं आया है. ठोस कार्रवाई के अभाव में आज भी समुद्री मलबे या मरीन लिटर में मल्टी लेयर प्लास्टिक, प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स, प्लास्टिक बोतल, सिगरेट बड्स, पैकेजिंग सामान बड़े पैमाने पर मिल रहे हैं.

FAQs

2050 तक समुद्र में कितना प्लास्टिक होगा? ›

एक अनुमान के साथ शुरू करते हुए कि 150 मिलियन टन प्लास्टिक पहले से ही दुनिया के महासागरों को प्रदूषित कर रहा है, और यह "रिसाव" हर साल कम से कम 9.1 मिलियन टन अधिक जोड़ता है - एक आंकड़ा जो सालाना पांच प्रतिशत बढ़ रहा है - मैकआर्थर रिपोर्ट की गणना 850-950 मिलियन टन महासागर होगा ...

भविष्य में प्लास्टिक का क्या होगा? ›

उद्योग के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि 2050 तक हम आज के मुकाबले तीन गुना अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर रहे होंगे ; मात्रा के आधार पर, WEF देखता है कि 2050 तक दुनिया के महासागरों में मछली की तुलना में अधिक प्लास्टिक होगा। हालांकि प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के समुद्रों के लिए बढ़ते खतरे के रूप में अकेला नहीं है।

समुद्र में प्लास्टिक के बारे में क्या किया जा रहा है? ›

महासागर प्लास्टिक को कम करना

इनमें प्लास्टिक की खपत को कम करना, कंपोस्टेबल सामग्री के साथ प्लास्टिक को प्रतिस्थापित करना, उत्पादों को डिजाइन करना और रीसाइक्लिंग को ध्यान में रखते हुए पैकेजिंग करना, रीसाइक्लिंग को बढ़ाना, प्लास्टिक का उचित निपटान जिसे पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है, और कचरे के निर्यात को कम करना शामिल है।

तेल से कितना प्लास्टिक बनता है? ›

99% से अधिक प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से प्राप्त रसायनों से बनता है, और जीवाश्म ईंधन और प्लास्टिक उद्योग गहराई से जुड़े हुए हैं।

क्या 2050 में मछली होगी? ›

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर प्रबंधन आज की तरह ही प्रभावी रहता है तो दुनिया 2050 में अतिरिक्त 10 मिलियन मीट्रिक टन मछली पकड़ने में सक्षम होगी। लेकिन प्रबंधन में महत्वपूर्ण सुधार के बिना मछली पकड़ने में वृद्धि शिकारी प्रजातियों के स्वास्थ्य को जोखिम में डालती है और पूरे पारिस्थितिक तंत्र को अस्थिर कर सकती है।

2050 में महासागर का क्या होगा? ›

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि समुद्र तट के साथ-साथ समुद्र का स्तर 2050 तक अतिरिक्त 10-12 इंच बढ़ जाएगा, जिसकी विशिष्ट मात्रा क्षेत्रीय रूप से भिन्न होगी, मुख्य रूप से भूमि की ऊंचाई में बदलाव के कारण।

क्या इंसान प्लास्टिक के बिना रह सकते हैं? ›

प्लास्टिक के बिना, चिकित्सा देखभाल असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल होगी । दरअसल, हम इतना प्लास्टिक पैदा करते हैं कि हर घंटे 2,000 ट्रक के बराबर कचरा पैदा हो जाता है। हम हर साल लगभग 300 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करते हैं और दुख की बात है कि उस राशि का 20% से भी कम पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।

अगर हम कचरा डालते रहेंगे तो पृथ्वी का क्या होगा? ›

कचरा जीवाणुओं के लिए एक प्रजनन स्थल के रूप में काम कर सकता है और मनुष्यों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क के माध्यम से बीमारी फैला सकता है। कुप्रबंधित कचरा भी कीटों को आकर्षित कर सकता है या आग का कारण बन सकता है। जलीय कचरे का मनोरंजन, पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

2025 तक समुद्र में कितना प्लास्टिक होगा? ›

ईआईए की रिपोर्ट है कि अगले पांच वर्षों के दौरान दुनिया के महासागरों में 250 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक होगा। 2040 तक, 700 मिलियन टन होगा - समुद्र में सभी मछलियों के संयुक्त वजन के बराबर।

समुद्र का पानी क्यों नहीं पी सकता? ›

समुद्र के पानी में इतना नमक होता है कि वो पीने योग्य नहीं होता. समुद्र का पानी अगर ज्यादा मात्रा में पिया जाए तो ये जानलेवा भी साबित हो सकता है. लाइव साइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्री जल के वजन का लगभग 3.5% उसमें मौजूद नमक से आता है. पानी में इतना ज्यादा नमक ही, उसे पीने योग्य नहीं बनाता.

हम समुद्र का पानी क्यों नहीं पी सकते हैं? ›

समुद्रों का पानी इतना खारा होता है कि इसे पीने के उपयोग में बिल्कुल नहीं लाया जा सकता है

दो समुद्र क्यों नहीं मिलती? ›

वैज्ञानिकों के मुताबिक दोनों के पानी का ना मिलने की वजह एक का खारा तो दूसरे का मीठा होना बताया गया है. वहीं दोनों का तापमान और लवणता का अलग-अलग होना भी है. कहा जाता है जिस जगह दोनों महासागरों का पानी मिलता है वहां झाग की एक दीवार बन जाती है. अलग-अलग धनत्व के कारण दोनों एक दूसरे से मिलते तो है लेकिन मिश्रित नहीं होते.

क्या दुनिया प्लास्टिक से खत्म हो जाएगी? ›

हालाँकि, भले ही हम अन्य प्रकार के कचरे के साथ काम करना शुरू कर दें, हमारे जीवन में प्लास्टिक खत्म नहीं होगा । हम अभी नहीं करेंगे। दुनिया में 9 अरब टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा है। उसमें से 91 प्रतिशत का पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जाता है।

प्लास्टिक कहां से आया? ›

प्लास्टिक प्राकृतिक, जैविक सामग्री जैसे सेल्युलोज, कोयला, प्राकृतिक गैस, नमक और निश्चित रूप से कच्चे तेल से प्राप्त होते हैं। कच्चा तेल हजारों यौगिकों का एक जटिल मिश्रण है और इसका उपयोग करने से पहले इसे संसाधित करने की आवश्यकता होती है। तेल रिफाइनरी में कच्चे तेल के आसवन से प्लास्टिक का उत्पादन शुरू होता है।

काला प्लास्टिक कैसे बनता है? ›

काला प्लास्टिक अक्सर ई-कचरे से बनाया जाता है

इनमें से कई उत्पाद इलेक्ट्रॉनिक और बिजली के उपकरणों के कचरे (ई-कचरे) के प्लास्टिक के पुर्जों से बनते हैं। समस्या यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स में आमतौर पर ज्वाला मंदक ब्रोमीन जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं; सुरमा; और भारी धातु जैसे सीसा, कैडमियम और पारा।

2050 में पृथ्वी पर क्या होगा? ›

2050 तक दुनिया (World Of 2050) की आबादी कम से कम 9 अरब से ऊपर हो सकती है वही भारत की पापुलेशन चीन से भी ज्यादा हो जाएगी। 2050 तक करीब 75 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में बस रही होगी। शहरों में आसमान छूती हुई गगनचुंबी इमारते बन जाएंगी। इतना ही नहीं हमे जमीन से ऊंची कई मंजिल ऊपर तक सड़कें बनी मिल सकती है।

2050 में प्लास्टिक क्या करेगा? ›

यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो 2050 तक हम 26 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन कर चुके होंगे, जिनमें से लगभग आधा लैंडफिल और पर्यावरण में फेंक दिया जाएगा। क्योंकि प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होता है, सहस्राब्दी के अंत तक हमारे ग्रह पर अरबों टन सामग्री होगी।

क्या मछली ऊपर से गिरती है? ›

इसलिए आसमान से गिरती हैं मछलियां

ना ही यह मछलियों की बारिश है। असल में बहुत तेज आंधी के साथ जब बारिश होती है तो कई बार तूफान और चक्रवात में तेज हवा के कारण नदियों के पानी में उछाल आता है। इस वजह से तेज हवाएं मछलियों को उड़ा ले जाती हैं और जहां भी कहीं हवा की गति धीमी होती है मछलियां नीचे गिरने लगती हैं।

क्या 50 साल में महासागर सच में मर जाएगा? ›

अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। जैसे ही प्लास्टिक का ढेर बढ़ता है, मछलियां गायब हो जाती हैं। चूंकि बीसवीं शताब्दी के मध्य में औद्योगीकृत मछली पकड़ने की शुरुआत हुई, महासागरों को रूपांतरित किया गया है।

हमारे महासागर कब तक रहेंगे? ›

इससे महासागरों का पूर्ण वाष्पीकरण होगा। घटना का अनुकरण करने में सक्षम पहला त्रि-आयामी जलवायु मॉडल भविष्यवाणी करता है कि लगभग एक अरब वर्षों में पृथ्वी पर तरल पानी गायब हो जाएगा, पिछले अनुमानों को कई सौ मिलियन वर्षों तक बढ़ा देगा।

क्या हम महासागरों को बचा सकते हैं? ›

महासागर ग्रह के 71 प्रतिशत हिस्से को कवर करते हैं और महत्वपूर्ण प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्रों का घर हैं जिन पर हम भोजन, आजीविका, जलवायु विनियमन और बहुत कुछ के लिए निर्भर हैं। लेकिन महासागरों को हमारी मदद की जरूरत है। महासागरों को बचाना कभी-कभी एक भारी काम की तरह लग सकता है, लेकिन अगर हम सब प्रयास करें, तो हम एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

प्लास्टिक का खतरा क्यों है? ›

क्योंकि प्लास्टिक के दहन से इससे कई सारी हानिकारक गैसे उत्पन्न होती है, जोकि पृथ्वी के वातावरण और जनजीवन के लिये काफी हानिकारक हैं। इस वजह से प्लास्टिक वायु, जल तथा भूमि तीनो तरह के प्रदूषण फैलाता है।

प्लास्टिक नहीं होगा तो क्या होगा? ›

प्लास्टिक के बिना, आप बिजली का उपयोग भी नहीं कर पाएंगे , आपके फोन या कंप्यूटर को बनाने के लिए कोई प्लास्टिक सर्किट नहीं होगा। कोई सस्ता एडेप्टर भी नहीं होगा। गैंडों जैसे वन्यजीवों को भी हम विलुप्त होने से नहीं बचा पाएंगे और न ही खुद को सुरक्षित रख पाएंगे।

प्लास्टिक से क्या क्या खतरा है? ›

प्लास्टिक प्रदूषण से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा होता है। प्लास्टिक में मौजूद रसायन मानव शरीर के लिए अत्यंत विषैले एवं हानिकारक होते हैं। प्लास्टिक में कैडमियम, पारा आदि जैसे रसायन का मिश्रण होता है जिससे मानव शरीर के सीधे संपर्क में आने से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

दुनिया का सबसे आखरी देश कौन सा है? ›

इंटरनेशनल डेस्क. ये फोटोज धरती के सबसे साउदर्न प्वाइंट पर मौजूद तिएरा डेल फ्यूगो आइलैंड की हैं। ये आइलैंड चिली और अर्जेंटीना के बीच बंटा है। धरती के आखिरी छोर पर बसा ये आइलैंड दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग पड़ा है।

कूड़ा क्यों नहीं डालना चाहिए? ›

कचरा हमारे पर्यावरण, हमारे वन्य जीवन और हमारी अर्थव्यवस्था को खतरे में डालता है । यह हमारे पड़ोस को प्रदूषित करता है, संपत्ति के मूल्यों को कम करता है, और हमारे शहर की प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट कर देता है। गंदगी की समस्या से निपटने का आदर्श तरीका यह है कि इसे पहले ही रोक दिया जाए।

धरती के बीच में क्या है? ›

आपको बताते चलें कि पृथ्वी के नीचे पूरा वैक्यूम है यानी कुछ भी नहीं। अब चुकी पृथ्वी हमारे सोलर सिस्टम में स्थित है और सोलर सिस्टम हमारे आकाशगंगा गैलेक्सी में. तो गैलेक्सी के कुछ एलिमेंट्स जैसे धूल गैस और बहुत ज्यादा दूर के स्टार जैसी संरचना है पृथ्वी के पीछे हो सकती है. क्या धरती का कोई किनारा है या नहीं?

भविष्य में समुद्र का क्या हो सकता है? ›

तो, जलवायु परिवर्तन और मानव प्रभावों के बीच, महासागर के लिए भविष्य क्या है? समुद्र का औसत तापमान बढ़ रहा है । एक गर्म महासागर एक और अधिक स्तरीकृत महासागर की ओर ले जाएगा, जिसका अर्थ है कि कम मिश्रण के साथ पानी की और भी परतें होंगी।

भारत में प्लास्टिक कब आया था? ›

प्लास्टिक को 1907 में बनाया गया था। इसने लोगों को सस्ती और सुविधाजनक चीज मुहैया करा दी। इसका इस्तेमाल रोजाना की ज़िंदगी में बढ़ता ही जा रहा है। आज प्लास्टिक हर जगह है।

समुद्र कितना बड़ा हो सकता है? ›

महासागर की सबसे गहरी जगह 11,034 मीटर (36,201 फीट) मापी गई है और यह प्रशांत महासागर की मारियाना ट्रेंच में चैलेंजर डीप नामक स्थान पर है। हैरानी वाली बात यह है कि या स्तर भी समुद्र का अंतिम स्तर नहीं है क्योंकि साइंटिस्ट अभी तक समुद्र का सिर्फ 5% का अनुमान लगा पाए हैं बाकी के 95% अभी भी बाकी है।

पानी को पचने और पेशाब करने में कितना समय लगता है? ›

यदि आप निर्जलित हैं, तो पानी अवशोषित हो जाएगा और विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए अंततः गुर्दे तक पहुंचने से पहले महत्वपूर्ण कार्यों को बनाए रखने के लिए भेजा जाएगा। आमतौर पर आपके शरीर को 2 कप पेशाब बनाने में 9 से 10 घंटे लगते हैं।

नदी का पानी मीठा क्यों होता है? ›

नदियों और झरनों के पानी में प्रकृति के अन्य पदार्थों से आए लवण घुलते हैं. लेकिन क्योंकि उनकी मात्रा कम होती है इसलिए नदी झरनों का पानी हमें मीठा ही लगता है.

पानी का आविष्कार कब हुआ था? ›

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि धरती पर पानी का आगमन लगभग 400 करोड़़ साल पहले हुआ होगा।

समुद्र में पानी कहाँ से आता है? ›

समुद्र का पानी कहाँ जाता है? समुद्र का पानी भाप बनता है और भाप से बादल बनते है। बादल वर्षा करते है और वो पानी वापस नदियों के द्वारा समुन्द्र में आ जाता है। इसमें से कुछ पानी का हिस्सा ग्लेशियर के रूप में भी रहता है किन्तु आज कल ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे है इसी लिए समुन्द्र भी बढ़ रहे हैं।

समुद्र पृथ्वी से कितना बड़ा है? ›

आज भी धरती की सतह पर कई महासागर हैं। पृथ्वी की 70.92 प्रतिशत सतह समुद्र से ढकी है। इसका आशय यह है कि पृथ्वी के लगभग 36,17,40,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में समुद्र है

समुद्र की उत्पत्ति कैसे हुई? ›

जब पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होने लगी वे उसके चारों तरफ गैस के बादल फैल गए। ठंडे होने पर ये बादल काफी भारी हो गए और उनसे लगातार मूसलाधार वर्षा होने लगी। लाखों साल तक ऐसा होता रहा। पानी से भरे धरती की सतह के ये विशाल गङ्ढे ही बाद में समुद्र कहलाए।

कौन सा समुद्र है जिसमें पानी नहीं है? ›

दरअसल, दुनियाभर में एक ऐसा समुद्र है जो 'डेड सी' के नाम से फेमस है. यह समुद्र जॉर्डन और इजरायल के बीच में है. इस समुद्र की खासयित ये है कि इसमें कोई भी व्यक्ति चाहकर भी डूब नहीं सकता. इस समुद्र को 'सॉल्ट सी' भी कहा जाता है.

समुद्र के नीचे क्या है? ›

समुद्र के नीचे क्या है? समुद्रके भीतर सब कुछ याने खारा पानी , वायु जैसे ऑक्सीजन , कार्बन डॉय ऑक्साइड , हर प्रकारके प्राणी जिसमें बॅक्टेरिया से लेके व्हेल जैसे सस्तन प्राणी , समुद्री घांस , छोटे पौधे , अनेक रासायनिक द्रव्य घटक , बड़े बड़े चट्टान , गहरी गहरी खायी , छोटे बड़े द्वीप , और कई चीजें हैं।

ऐसी कौन सी नदी है जो आपस में नहीं मिलती है? ›

हमारे देश में एक ऐसी नदी भी है जिसका किसी भी समुद्र के साथ संगम नहीं होता. राजस्थान के अजमेर से निकलती है लूनी नदी राजस्थान के अजमेर से निकलने वाली लूनी नदी देश की एकमात्र ऐसी नदी है, जिसका किसी भी समुद्र के साथ संगम नहीं होता है.

प्लास्टिक का भविष्य कैसा दिखता है? ›

उद्योग के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि 2050 तक हम आज के मुकाबले तीन गुना अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर रहे होंगे ; मात्रा के आधार पर, WEF देखता है कि 2050 तक दुनिया के महासागरों में मछली की तुलना में अधिक प्लास्टिक होगा। हालांकि प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के समुद्रों के लिए बढ़ते खतरे के रूप में अकेला नहीं है।

2050 में कितना प्लास्टिक का उत्पादन होगा? ›

दुनिया भर में 2025-2050 तक प्लास्टिक उत्पादन का अनुमान

अगले दशकों में वार्षिक उत्पादन मात्रा में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है, जो 2050 तक लगभग 590 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ जाएगी। यह 2025 की तुलना में 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होगी।

थोड़ा सा प्लास्टिक खाने से क्या होगा? ›

आपके द्वारा निगले गए प्लास्टिक के टुकड़े के आकार के आधार पर, यदि यह आपके गले के नीचे जाने पर कोई असुविधा नहीं पैदा करता है, तो शौचालय जाने पर आप इसे बाहर निकालने की संभावना रखते हैं। दूसरी ओर, यदि प्लास्टिक का टुकड़ा नुकीला है, तो यह आपकी आंत की परत को नुकसान पहुंचा सकता है और आंतरिक रक्तस्राव का कारण बन सकता है।

सबसे पहले प्लास्टिक का क्या नाम था? ›

पॉलीऑक्सीबेंज़िलमेथिलेंग्लीकोलेनहाइड्राइड, जिसे बैकेलाइट के नाम से जाना जाता है, सिंथेटिक घटकों से बना पहला प्लास्टिक था।

दुनिया में कितना प्लास्टिक है? ›

वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) के अनुसार दुनियाभर में प्लास्टिक का उपयोग 8.3 अरब टन पहुंच चुका है। यह आठ लाख एफिल टॉवर बनाने के बराबर है। करीब 90 फीसदी प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है।

समुद्र में प्लास्टिक कैसे मिलता है? ›

बारिश का पानी और हवा प्लास्टिक कचरे को नदियों और नालों में ले जाती है। नाले समुद्र की ओर ले जाते हैं! लापरवाह और अनुचित अपशिष्ट निपटान भी एक बड़ा योगदानकर्ता है - कचरे का अवैध डंपिंग हमारे समुद्रों में प्लास्टिक की वृद्धि को बहुत बढ़ा देता है।

क्या काला प्लास्टिक जहरीला होता है? ›

काले प्लास्टिक मूल रूप से अपने रंग के कारण पुन: उपयोग योग्य नहीं होते हैं। उनमें भारी धातुओं और ज्वाला मंदक सहित जहरीले रसायनों की अनियमित मात्रा भी हो सकती है, जिसका अर्थ है कि वे आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

काला प्लास्टिक सस्ता क्यों है? ›

इसके व्यापक उपयोग का एक प्राथमिक कारण यह है कि इसे ब्लैक कार्बन को कम लागत वाले बहुरंगी प्लास्टिक कचरे में एकीकृत करके उत्पादित किया जा सकता है ; इसे अन्य प्रकार के प्लास्टिक की तुलना में सस्ता बनाता है।

प्लास्टिक किसकी बनी होती है? ›

प्लास्टिक कई तत्वों को मिलाकर निर्मित किया जाता है। इन तत्वों में कार्बन, सल्फर, क्लोरीन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन को सम्मिलित किया जाता है। चूँकि इसमें अनेक तत्वों का समावेश होता है तो सम्भवतः इसमें अणु व परमाणु भी पाये जाते हैं, जो परस्पर बन्धन में होते हैं।

2023 में समुद्र में कितना प्लास्टिक है? ›

महासागरों में 5.25 ट्रिलियन से अधिक मैक्रो और प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े हैं। यह समुद्र के प्रति वर्ग मील 46,000 टुकड़ों के बराबर है।

हर साल समुद्र में कितना प्लास्टिक जाता है? ›

हर साल कम से कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में समाप्त हो जाता है, और प्लास्टिक सतह के पानी से लेकर गहरे समुद्र के तलछट तक पाए जाने वाले सभी समुद्री मलबे का 80% हिस्सा बनाता है। समुद्री प्रजातियां प्लास्टिक के मलबे में प्रवेश करती हैं या फंस जाती हैं, जिससे गंभीर चोटें आती हैं और मृत्यु हो जाती है।

समुद्र में कितना प्लास्टिक है? ›

हमारे महासागर में अब 5.25 ट्रिलियन मैक्रो और सूक्ष्म प्लास्टिक के टुकड़े हैं और समुद्र के प्रत्येक वर्ग मील में 46,000 टुकड़े हैं, जिनका वजन 269,000 टन तक है। प्रतिदिन लगभग 80 लाख प्लास्टिक के टुकड़े हमारे महासागरों में पहुँचते हैं।

समुद्र में इंसान कितनी गहराई तक जा सकता है? ›

मनुष्य समुद्र में कितनी गहराई तक कुछ साधनों के सहारे जा सकता है या जा सका है? समुद्र 10,898 मीटर से 10,916 मीटर तक गहरा है, यानी करीब 11 किलोमीटर की गहराई। अभी तक करीब 1000 लोग सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है तो इसकी तुलना में महज 3 व्यक्ति ही सबसे गहरी खाई मरियाना ट्रेंच तक जा सके हैं।

समुद्र कितनी दूर में है? ›

समुद्र या सागर पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में विस्तृत, लवणीय जल का एक सतत निकाय है। पृथ्वी पर जलवायु को संयमित करने, भोजन और ऑक्सीजन प्रदान करने, जैव विविधता को बनाए रखने और परिवहन के क्षेत्र में सागर अत्यावश्यक भूमिका निभाते हैं।

प्लास्टिक कहां खत्म होता है? ›

आप कूड़ेदान में जो प्लास्टिक डालते हैं वह लैंडफिल में समाप्त हो जाता है। जब कचरे को लैंडफिल में ले जाया जा रहा होता है, तो प्लास्टिक अक्सर उड़ जाता है क्योंकि यह इतना हल्का होता है। वहां से, यह अंततः नालियों के आसपास अव्यवस्थित हो सकता है और इस तरह नदियों और समुद्र में प्रवेश कर सकता है।

पृथ्वी से समुद्र की गहराई कितनी है? ›

तो आसान भाषा में आपको बता दें कि समुद्र 11 हजार मीटर यानी करीब 11 किलोमीटर तक गहरा है और मरियाना ट्रेंच धरती की सबसे गहरी जगह है.

प्लास्टिक कहां से आता है? ›

प्लास्टिक को पोलीमराइज़ेशन या पॉलीकंडेंसेशन प्रक्रिया के माध्यम से प्राकृतिक सामग्री जैसे सेलूलोज़, कोयला, प्राकृतिक गैस, नमक और कच्चे तेल से बनाया जाता है। प्लास्टिक प्राकृतिक, जैविक सामग्री जैसे सेल्युलोज, कोयला, प्राकृतिक गैस, नमक और निश्चित रूप से कच्चे तेल से प्राप्त होता है।

हर साल कितना कचरा पैदा होता है? ›

अमेरिका हर साल 268 मिलियन टन कचरा पैदा करता है - 140 मिलियन लैंडफिल में जा रहा है - औसत अमेरिकी प्रति दिन 4.5 पाउंड कचरा फेंकता है। हम अपने कचरा उत्पादन को सीमित करने के लिए क्या कर सकते हैं?

दुनिया में कितना कचरा है? ›

दुनिया सालाना 2.01 अरब टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न करती है, यह 2050 तक लगभग 70 प्रतिशत बढ़कर 3.4 अरब मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। वर्तमान में दुनिया की आबादी लगभग 7.9 अरब है और बढ़ रही है।

पूरी दुनिया में कितने समुद्र है? ›

प्रशांत महासागर तथा अटलांटिक महासागर का विस्तार उत्तरी गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध दोनों जगह है इसलिए भूमध्य रेखा के उत्तर में स्थित उत्तरी प्रशांत महासागर तथा दक्षिण में स्थित दक्षिणी प्रशांत महासागर स्थित हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 7 महासागर या 7 समंदर हैं

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Author: Nathanial Hackett

Last Updated: 04/11/2023

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